
हिंदू धर्म में होली का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. होली से एक दिन पहले होलिका दहन का आयोजन किया जाता है, जिसका बहुत धार्मिक महत्व माना जाता है.
हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन होली का त्योहार मनाया जाता है, जो कि हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख त्योहार माना जाता है. इस दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर उत्सव मनाते हैं. होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है और इस दिन विशेष पूजा-पाठ भी किया जाता है.
होलिका का दहन क्यों होता है?
होलिका दहन, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा की जाती है और अलाव जलाया जाता है. होलिका दहन के दिन होलिका की पूजा करने का विधान माना गया है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद को जलाने वाली होलिका खुद ही अग्नि में जल गई थी, इसलिए इस दिन होलिका दहन किया जाता है.
होलिका दहन के पीछे की कहानी क्या है? (Story of Holika Dahan)
होलिका दहन की कथा भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद से जुड़ी मानी जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार, प्रह्लाद के पिता राक्षसराज हिरण्यकश्यप था, जो कि भगवान विष्णु का सबसे बड़ा शत्रु माना जाता था और वह खुद को भगवान मानता था. उसने अपने राज्य में सबको यह आदेश किया था कि कोई भी ईश्वर की पूजा नहीं करेगा. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. जब हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को भगवान की पूजा करते हुए देखा तो उसने अपने ही पुत्र को दंड देने की ठान ली. हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई बार कष्ट देना चाहा, लेकिन भगवान विष्णु ने हमेशा प्रह्लाद का साथ दिया.
अंत में अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती है, इसलिए होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका उस अग्नि में भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया. तब से होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. होलिका दहन के अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है.
इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है